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मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ़ झाँसी

फीचर डेस्क मुंबई। मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ़ झाँसी एक भारतीय फिल्म है जो हिन्दी और मराठी भाषा में है और यह झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी है। फिल्म का निर्माण ज़ी स्टूडियो द्वारा एवं कृष द्वारा निर्देशित किया जा रहा है। अभिनेत्री कंगना राणावत ने रानी लक्ष्मीबाई की मुख्य भूमिका निभाएंगी। फिल्म का निर्माण 2017 में शुरू हुआ और 25 जनवरी 2019 को इसका प्रदर्शन किया जायेगा। यह फिल्म झाँसी के रानी लक्ष्मीबाई के जीवन और 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ उनकी लड़ाई पर आधारित है। मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वीरांगना थीं रानी लक्ष्मीबाई उन्होंने सिर्फ़ 29 साल की उम्र में अंग्रेज़ साम्राज्य की सेना से जद्दोजहद की और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई। 


  • निर्देशक- कृष
  • निर्माता- ज़ी स्टूडियो, कमल जैन, निशांत पिट्टी
  • लेखक- के॰वी॰ विजयेन्द्र प्रसाद (कहानी), प्रसून जोशी (गाने)
  • संगीतकार- शंकर-एहसान-लॉय
  • कलाकार- कंगना राणावत, जीशु सेनगुप्ता, अतुल कुलकर्णी, सोनू सूद, सुरेश ओबेराय, वैभव तत्ववादी, अंकिता लोखंडे, रिचर्ड कीप, निहार पांड्या, अमित बहल, एंडी वॉन इच आदि।

कंगना राणावत की फिल्म-

रंगून, कट्टी बट्टी, तनु वेड्स मनु: रिटर्न्स, उंगली, रिवॉल्वर रानी, क्वीन, कृष 3, शूटआऊट ऍट वडाला, तेज़, तनु वेड्स मनु, रास्कल्स, डबल धमाल, रेडी, गेम, तनु वेड्स मनु, नो प्रौब्लम, नोक आउट, वन्स अपॉन ए टाईम इन मुम्बई, काइट्स, एक निरंजन, वादा रहा, राज़ : दि मिस्ट्री कन्टिन्युज, फैशन, धाम धूम, लाइफ़ इन अ... मेट्रो, तारा रम पम, शाकालाका बूम बूम, वो लम्हे, गैंगस्टर





कंगना राणावत का जीवन परिचय-


कंगना राणावत हिन्दी सिनेमा में थियेटर से आई है। दिल्ली की अस्मिता थियेटर से कैरियर की शुरूआत करने वाली भारतीय फिल्म अभिनेत्री कंगना राणावत का जन्म 27 मार्च 1987 में हिमांचल प्रदेश में हुआ है। क्वीन से हिन्दी सिनेमा में डेब्यू करनी वाली अदाकारा को पहली फिल्म में वर्ष का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के एवार्ड से नवाजा गया। कंगना का फिल्मी कैरियर संघर्षों भरा रहा है शुरूआत की दिनों में फिल्म ज्यादा कुछ नहीं कमाई कर पाया लेकिन उनके अभिनय को काफी सराहा गया। 2006 में और गैंगस्टर फिल्म के लिये उनको स्टार स्क्रीन पुरस्कार तथा 2009 में फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार फिल्म फैशन के लिए दिया गया।


मणिकर्णिका के संवाद-

जब बेटी उठ खड़ी होती है तभी विजय बड़ी होती है...
मैं वो मशाल बनूंगी जो हर भारतीय के अंदर आजादी की भूख बनकर दहकेगी...
झांसी आप भी चाहते हैं और मैं भी, फर्क सिर्फ इतना है आपका राज करना चाहते है और मुझे अपनो की सेवा...
भारतवर्ष एक महान सभ्यता, जहां मिट्टी भी सोना थी और दिलो के दरवाजे हर मेहमान के लिये खुले थी। इन्ही दरवाजे से एक दिन घुस आये कुछ क्रुर शैतानी यादे। इंसां और अत्याचार के सामने  घायल हो रही थी आत्मा तब इस मिट्टी की गर्भ से उठ खड़ी हुई मणिकर्णिका।
खूब लड़ी मर्दानी थी वो झांसी वाली रानी थी वो...

इतिहास- लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1835 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई की मृत्यु के बाद घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए उनके पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी ली। सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। 

झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। 1857 में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 में ब्रिटिश सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रिटिश सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गई।

सोशल मीडिया में कंगना राणावत

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मूवी स्क्रीनशॉट इन मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ़ झाँसी




 






































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